shayari--मैं चाहती हूँ



डूबना चाहती हूं 
तेरी झील सी आंखो मे
मैं बंधना चाहती हूँ
तेरे मन के हर बंधन मे

मुरझाया हुआ लगता है 
कमी है आज चमन में 
मैं खुशबु चाहती हूँ
समेट ले आ तेरे बदन में 

कब तक अधूरी प्यासी रहू खडी
मैं तेरे आंगन में
अब तो बरस 
मैं भीगना चाहती हूं
तेरे बेसुमार सावन में 

इसलिए मौत आते ही
' सीमा ' चैन से सो गई कब्र मे 
अब जीना चाहती हूँ 
तेरे दिल की हर धडकन मे ...

0 comments:

Post a Comment

Recommended Post Slide Out For Blogger