दर्द-ए-मोहब्बत जो करे वो अपना यार खोते है,
सारी रैना सोते-जागते अपनी आँखें भिगोते है।
सिर्फ़ तुम्हारी ही याद आती है हमको तन्हाई में,
सारी रैना तुम्हारी यादों की हम माला पिरोते है।
अपनी वफ़ा के बदले तुम्हारी बेवफ़ाई याद करते,
सारी रैना तुम्हारी यादों के साथ में अकेले रोते है।
दर्द-ए-मोहब्बत में बेवफ़ाई तेरी क़िस्मत में कहाँ,
कुछ हमारे जैसे भी बदक़िस्मत आशिक़ होते है।
आधी ही नींद में सारी रैना बीत जाती है " सीमा",
और आशिक़ ही जीते जी मुक़म्मल नींद सोते हैं
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