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ये आभासी से किस्से ,
हवा की है बाते हर एक जुबां की कहानी सुनाते
यहां प्रेम की रस्सी से जुड़ने तो आते
जो टूटे उसी पल वो गांठ बन जाते
वो किस्से पुराने ग़ढ कर बताना
वो कहना नही जो हुआ फ़साना
नही कोई मंजिल न् राहे यहाँ है
फिर भी हर कोई गुजरता यहाँ है
ये रुई से फाहे ,ये धुंध सी राहे
 ये कहते जबानी ,वो होती नादानी
न् होती जमीनी सी इनकी कहानी
न् कहना इन्हें कुछ न् सुनना सम्भलना
ये आभासी है दुनियां ज़रा दूर रहना।

1 comments:

Dev Kumar said...

वाह क्या बात है बहुत खूब पढ़के मज़ा आ गया
आज के दौर पर एक दम सटीक बैठती है आपकी ये रचना /

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